रामकिशोर गर्ग से पुनःमिलन की आशा

वो दोस्त था? नही मेरे लिए तो बड़ा भाई रहा
सालों से कारोबार का एक अनोखा साथी रहा

कई सुखद पल बिताये थे हम दोनों ने साथ में
हंसी मजा के फव्वारे उड़ाए थे हमने साथ में

सोचा था ऐसे ही हँसते साथ साथ और बूढ़े होंगे
तकदीर को मंजूर न था, कहा, ये न हमसे माँगे

एक सरल, सहृदय दोस्त, आज जाने कहाँ चला गया
ढूंढता फिरता इस नगरी में, मेरा बड़ा भाई कहाँ गया

अब कौन कहेगा घर आने से चलो चाय पीते हैं
नास्ते के साथ थोड़ी थोड़ी गपशप भी कर लेते है

बड़ी मुश्किल से मिलते है ऎसे सादगीपूर्ण सदगृहस्थ
उनकी कहानी दोहरा सकता हूं, है मुझे तो कंठस्थ

आँखों से ओझल हुए भले, हम तुम्हें ढूंढते रहेंगे
मानो न मानो, एक दिन तो तुम्हें हम ढूंढ ही लेंगे

फिर चलेगा दौर दोबारा, ऐसे ही हँसी के फव्वारे का
बस इंतेज़ार रहेगा हम सबको उस सुनहरे दिन का !

रामकिशोर गर्ग जी को हम सब गर्गसाहेब कहकर पुकारते थे.

संवेदनशील, सरल, शिस्त के आग्रही, व्यंग पसंद करने वाले सद्ग्रस्थ रहे....

कोरोना से ग्रस्त जब वे कुछ ही दिनों में हमें छोड़ गए तब गम और ग्लानि के माहौल में लिखी हुई पंक्तियाँ.....

Back