*गर्ग का दर्द*

वर्षा की क्या मजाल हमसे यूँ जित ले
अविरत अश्रुधारा वो भी तो देख ले

जहां आनंद के फव्वारे थे,आज सिर्फ खेद है
जहा ख़ुशीयों के गीत थे, आज दु:खी संगीत है

समझ स्वजनों के संग निकले लम्बी सफ़र है
फिर इतनी त्वरा से क्यूँ आया उनका मुकाम है

जानते है तू है बड़ा क्यूँ जताता इस तरह
स्वजनों से बिछडने का क्या जाने तू विरह

सुख:चैन छिन लिया आज बस विषाद है
जीवन के सुकर्मो का क्या यही हिसाब है

आंख रोये, दिल रोये, रोये सब आत्मा
और भी रुलाएगा क्या तू परमात्मा

रामकिशोर गर्ग के यह दिल की कहानी
मेरी कलम लिख्खी उनकी दास्ताँ रूहानी




मेरे सहकार्यकर्ता और बड़े भाई जैसे गर्गजी के कुटुम्ब के काफी सारे नजदीकी सदस्य हफ्ते भर की अवधि में ही चल बसे और उससे गर्गजी के दिल पे लगी चोट को महसूस करते हुए लिखा गया काव्य प्रयास

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