स्वर्ग की दो परी

दो नन्ही सी परी, दिल को छु ले गई
अपनी अनोखि सी दुनिया दिखाते गई

आँखे तितली हुई, संग उड़ा ले गई
उनके पंखो पर सवार "स्वर्ग" की झांखी हुई

कभी रोने लगी,कभी हसती ही रही
मोती ओ की यूँ बुँदे बिखरते गई

बेशब्द बोली से "माया" यूँ लिपटते गई
मानो जादू की छड़ियां घुमाती गई

बचपन में ही ये परियां यूँ आती हैं क्यूँ
दिव्य "आनंद" से 'रूह' को लुभाती हुई

बचपन ही "स्वर्ग" हैं ये जताती गई
कि"स्वर्ग" से "कृष्ण" की राह दिखाती गई

प्रियजन अमित और नेहल की नन्हिसि जुड़वा बेटियो के लिए उन्हें देखते ही स्फुरित हुई पंक्तियां......

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